Saturday, June 6, 2009

एक तस्वीर के लिए

जिन तस्वीरों से फोटो जर्नलिस्ट लोगों तक जीवंत खबरें पहुंचाते हैं..वो बड़ी मुश्किल से ली जाती हैं..कई बार तो उन्हें अपनी जान भी जोखिम में डालनी पड़ती है..लेकिन प्रणब दादा को देखिये कितना गुरूर है उन्हें ..जिस आर्थिक मंदी की मार पूरा देश झेल रहा है..उस मंदी के मंत्री हैं..जनता ने तो नेताओं के खिलाफ वैसा गुस्सा नहीं दिखाया..किसी नेता या मंत्री को उसकी नाकामयाबी के लिए सजा नहीं दी..और प्रणब दादा तो इतने बेरहम निकले की कान पकड़ने में भी देर नहीं की..ऐसी छवि बनाकर क्या वो बंगाल में कांग्रेस का भला कर पायेंगे..इस सवाल का जवाब तो खैर बंगाल की जनता को देना है..प्रणब जैसे नेताओं के लिए भले ही अब एक तस्वीर की अहमियत न रह गयी हो..लेकिन अपने मंत्रालय से देश की तस्वीर प्रणब कितनी बादल पायेंगे इसकी एक तस्वीर तो पाँच साल बाद उन्हें जरूर देनी होगी..और फिर अपने कान भी उन्हें तैयार रखने होंगे..

Tuesday, June 2, 2009

बच के रहना

भइया मीडिया में मंदी की मार तो आप सब झेल ही रहे हो..अब बॉस की मार भी झेलनी पड़ सकती है..ख़बर है कि न्यूज़रूम के अन्दर अब बात मारा मारी पर उतर आयी है..खबरें तो उडती हुई ये भी आ रही हैं कि टीआरपी की तड़प कुछ चैनल्स में इतनी ज्यादा है कि महिला कर्मियों को भी गुस्से का शिकार बनाया जा रहा है...जिन कीबोर्ड्स से खबरें लिखी जाती हैं उन्हें उठाकर मार पीट की तैयारी चल रही है..पेशे से पत्रकार लोग जब इस तरह खुलेआम गुस्से का इज़हार करेंगे तो फिर किस मुंह से आतंक और असहिष्णुता के खिलाफ आवाज़ उठाएंगे .खैर अभी जो हालात हैं उसमे नौकरी जाने का डर इस कदर दिलों में समाया है कि बगावत पर तो उतारू नहीं हो सकते..लेकिन अपने मीडिया बंधुओं और बहनों से इतना ज़रूर कहेंगे कि आगे पीछे देखते रहना और जिनपर टीआरपी का भूत सवार हो उनसे ज़रूर बच के रहना..