Tuesday, March 9, 2010

अब तो जागो

गृहसचिव जी के पिल्लै का बयान आया है...एनजीओ माओवादियों की तरफदारी ना करें...सवाल उठना लाजमी है...सरकारी तंत्र जिस तरह से काम कर रहा है...उसका मजाक बनना तय है...जो काम सरकार को करना चाहिए...उसे एनजीओ के हाथों में देकर सरकार अपना पल्ला झाड़ना चाहती है...चलिए देर से ही सही सरकार को ये एहसास हुआ कि भाड़े के समाजसेवियों के हाथों गरीबों, लाचारों और सूदखोरों के चंगुल में फंसे लोगों की तस्वीर नहीं बदल सकती...हां उन्हें माओवादी कहलाने का तमगा जरूर मिल जाएगा...
अब मुद्दे पर आते हैं....हजारीबाग के भटबिगहा गांव में सूदखोरों के चंगुल में फंसे भाट परिवारों की दास्तान अभी कुछ दिन पहले ही सुनी थी कि आलोक तोमर जी का कालाहारी पर झकझोर देने वाला आलेख भी सामने आ गया...कालाहांडी में दो साल पहले नरेगा की जालसाजी का मामला तो जोर शोर से उठा था...जहां न तो जरूरतमंदों को रोजगार मिला था और ना ही पैसे...लेकिन कागज पर हिसाब किताब था बिलकुल परफेक्ट...और अब तो गरीबी की वजह से सीमांत किसान खुदकुशी कर रहे हैं...कालाहंडी का काला सच देख सुनकर भी सरकार आंखें मूंदी हुई है...समझ में नहीं आता कि ऐसे मामलों के लिए किसी की जिम्मेदारी तय क्यों नहीं हो रही... और अगर ऐसे मसलों को हल करने के लिए जिम्मेदारी अबतक तय नहीं की गई है, तो फिर सरकारें किस बात के लिए हैं...ऐसी खबरें देखकर तो लगता है कि लोकतंत्र की राह तिरेसठ साल चलते रहने के बावजूद न तो नेताओं की, न सरकार की और न ही समाज के पूंजीपति वर्ग की सामंती सोच खत्म हुई है...एक इंसान आज भी दूसरे को अपना गुलाम बनाए रखना चाहता है...ये सोच कब बदलेगी...क्या दून और स्टीफेंस में पढ़कर ये सोच बदल सकती है...जहां ज्यादातर सामंती परिवार के लोग ही दाखिला लेने में कामयाब हो पाते हैं...ऐसे लोगों की आजादी के लिए बौद्धिक आंदोलन फिर से तेज करना होगा...ये नामुमकिन नहीं है....आलोक जी के आलेख से साफ है कि उन्होंने अच्छी पहल की है...लेकिन इसे आंदोलन का रूप दिए बिना बात नहीं बनेगी...स्थानीय स्तर पर, राज्य स्तर पर, केंद्र के स्तर पर और उससे भी ज्यादा व्यक्तिगत स्तर पर पहल करनी होगी...सरकार किसानों की कर्जमाफी कर सकती है तो आजाद देश में गुलामी की जंजीर में जकड़े इन लाचार लोगों की मदद क्यों नहीं कर सकती...ऐसे लोगों की जिंदगियां संवारने के लिए सरकार को समयबद्ध और सार्थक पहल करनी चाहिए..उन्हें बेहतर आजीविका के अवसर प्राथमिकता के तौर पर मुहैया कराए जाने चाहिए....दरअसल विकास के समान अवसरों से तो ऐसे ही लोग वंचित हैं...देश में और भी ऐसे जितने इलाके हैं उनकी पहचान कर वहां के लोगों की मदद करनी चाहिए....नहीं तो जिस तरह से दुनिया भर के समाजसेवी बोलांगीर में भारत का मजाक बना रहे हैं...देश की छवि कल्याणकारी राज्य की नहीं रह जाएगी...