Sunday, September 18, 2011
समन्दर की मुफलिसी
हिंदुस्तान के पूर्वी राज्य उड़ीसा में एक बेहद मनमोहक समुद्री तट है पुरी । देश और दुनिया से लोग यहां भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने तो आते ही हैं, फुर्सत के कुछ पल पुरी के तट पर बिताना नहीं भूलते। पुरी मैं भी गया। लेकिन भगवान जगन्नाथ के दर्शन नहीं कर पाया। हां पुरी के शंकराचार्च निश्छलानंद सरस्वती से जरूर लंबी बात हुई। उनके विचार समंदर से भी व्यापक थे। ये बात और है कि ऐसे विचार अब चंद लोगों की ही जिंदगी में उतर पाते हैं। निश्छलानंद सरस्वती जी की बातों ने एक बड़ी उलझन पैदा कर दी। जीव और ब्रह्म एक दूसरे से कैसे जुड़े हैं ये सोचने पर थोड़ी देर के लिए मजबूर कर दिया । लेकिन पुरी के समुद्र तट पर ये बोझ भी खत्म हो गया। मैं सोच रहा था कि क्या समन्दर भी उस ब्रह्म जैसा नहीं है जिसका अंश उसमें पैदा हुए जीवों में है। समंदर भी तो अनगिनत जीवों का जन्मदाता और उनका पालनहार है । लेकिन इस समंदर की एक मुफलिसी मेरी समझ से परे हो गई। हर लहर में कुछ शंख रेत पर आकर ठहर जाते थे। जिसे समंदर वापस नहीं ले जा पाता था । ये शंख लोगों के घरों तक पहुंचते हैं। किसी की गर्दन से लटकते हैं । और, कोई इसे फूंकने से निकलने वाली आवाज को परब्रह्म की आवाज समझ लेते हैं। लेकिन समंदर आखिर क्यों हर थपेड़े में किसी ना किसी को रेत पर छोड़कर चला जाता है। कहीं ये समंदर की मुफलिसी तो नहीं कि उसे अपनों को भी जुदा करना पड़ता है । अगर जीव एक ही परमात्मा का अंश है तो आखिर क्यों उसे अपने जन्मदाता से जुदा होना पड़ता है । क्यों उसे अपने अंशी से मिलने का यत्न करना पड़ता है। और अगर उस अंशी ने समंदर की तरह ही किसी मुफलिसी में अपने अंश को भी रेत पर अकेला छोड़ दिया है। तो क्या फिर से उसका अपने अंशी से मिलना मुमकिन हो पाएगा । यहां से हमारे शास्त्र मोक्ष की बात शुरू करते हैं । तो क्या मुफलिसी ही मोक्ष है। किसी को उसकी दुनिया से जुदा कर देना मोक्ष है। और क्या जीवन से भरे समुद्र से जुदा होने वाले शंख को रेत पर मोक्ष मिल जाता है। ये सवाल आपको कौंधेंगे अगर आप दुनिया की हरकतों को इसी नजरिए से देखेंगे। क्योंकि ना तो समन्दर की मुफलिसी कम हो रही है और ना ही धरती की। फर्क सिर्फ ये है कि धरती मुफलिसी में आकर हमें कहां फेंक देती है ये हम खुद नहीं देख पाते।
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