Monday, November 17, 2008
सवाल मुल्क का है
आतंक के क्या मायने हैं.....या यूँ कहें कि आतंक से दुनिया को बचाना क्यूँ ज़रूरी है.... तो आजकल जो हिन्दोस्तान में देखने को मिल रहा है...पूरी दुनिया के लिए नसीहत बन सकता है...नफरत के दलदल में कैसे एक समाज फँस कर ग़लत रास्ता अख्तियार कर सकता है इसकी पहली तस्वीर भारत में दिखी है....आतंक और धार्मिक कट्टरपंथ कैसे मुल्क के लिए बराबर के दुश्मन बन सकते हैं...इसकी सीख हिन्दोस्तान को मिली है ...आतंक की आग में पूरी दुनिया झुलस रही है..बदले की आग हर जगह सुलग रही है..कोई युद्ध कर बदला लेना चाहता है तो कोई सौहार्द का रास्ता छोड़ आतंक से ही आतंक का जवाब ढूंढ रहा है..सवाल ये है कि क्या इससे सूरत बदलेंगे...क्या नफरत कम होगा...क्या हिंदू और मुसलमान एक दूसरे को निशाना बनाकर कोई मुकाम हासिल कर पायेंगे...ये कैसे विचार हैं...क्या इतने गंदे विचार कभी धार्मिक कहे जा सकते हैं...क्या कोई धर्म ऐसा करने की इजाज़त दे सकता है...क्या धर्म के नाम पर हिंसा कोई मुल्क कुबूल कर सकता है..और ऐसी करतूत से क्या धर्म गुरु अपनी छवि स्वस्थ बनाये रख पाएंगे..हिंदुस्तान आज एक ऐसी मुश्किल से जूझ रहा है...जहाँ उसे रास्ता दिखाने वाले कम और गुमराह करने वाले ज्यादा दिखाई दे रहे है...इस मामले में भी सियासत की जा रही है...तो क्या अब हिंदू भी अपनी छवि आतंकियों की बनाना चाहते हैं...दुनिया के कई मुल्कों में बेगुनाह मुसलमान पहले से ही आतंक का कलंक ढो रहे हैं...उन्हें संदेह की नज़र से देखा जाता है...तो क्या अभी जो हिन्दोस्तान में हिंदू आतंकवाद का मामला सामने आया है...उससे हिन्दुओं पर उंगलियाँ नहीं उठेंगी...क्या हिंदू समाज को भी इसका कलंक नहीं ढोना पड़ेगा...ये ऐसे सवाल हैं...जिनका जवाब हिंदुस्तान की अवाम को देना पड़ेगा...नहीं तो हिन्दुओं और हिंदू धर्म की छवि धूमिल होगी...इससे इनकार नहीं किया जा सकता...
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