बन्दर की पूँछ खींचना और फिर भाग खड़ा होना यहीं तक राजनीति से वाम दलों का सरोकार है। सरकार है तो इसे चलाने वाले लोगों की भी जरूरत है। गलत है तो इसे सही साबित करने वालों की भी ज़रूरत है। राईट है तो लेफ्ट की भी ज़रूरत है। तभी तो सरकार बीच वाले ट्रैक पर चल पायेगी। जनता को पता नहीं क्या हो गया है। जो लोग साथ बैठकर खाते पीते हों, सरकारी सुविधाएं गरक करने मे जी जान से लगे हों वो सरकार आख़िर क्यों गिरायें। कोइ अपना घर खुद गिराता है क्या । पते की बात तो ये है कि बयान देने से पहले ही ये अन्धसमर्थक इस बात पर भी विचार विमर्श कर लेते हैं कि जनता के बीच किस बात का क्या संदेश जाएगा। साथ ही ये रणनीति भी पहले ही तय होती है कि पांव पीछे कब और कैसे खीचना है। ये कैसा विरोध है। डील तो पहले ही सील और signed है फिर ऐसा क्या समझौता हो गया कि लेफ्ट ने फैसला पलट लिया । अब जनता के बीच क्या रसगुल्ला लेने जायेंगे। क्या इनका सरोकार जनता को बार बार गुमराह कर राजनीति की चिकनी चोपरी रोटी सेकने तक है। जनता को क्या वाकई इनकी बात समझ में नहीं आ रही है।
आप इस विषय पर अपना मंतव्य हमें ज़रूर भेजें।
अमरेश
Wednesday, August 22, 2007
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1 comment:
गहरी बात कहते हैं। स्वागत है हिन्दी चिट्ठाजगत में।
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