Saturday, April 28, 2007

आपका दलाल

आपका दलाल
इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि जहाँ आम लोगों की अनगिनत समस्याओं का हल ढूंढ़ना मुश्किल हो रहा है वहां नेता दलाली और कबूतरबाजी में अपना समय लगा रहे हैं। ये बात संसद तक पहुंच चुके जनप्रतिनिधियों से लेकर सड़क छाप नेताओं तक बराबर लागू हो रही है। बडे नेताओं के छोटे नेता दलाल हैं। नेताओं को वक़्त ही नहीं मिलता की वे ठीकेदारी के अलावा जनकल्याण की बातें करें। ऐसा मैं अपने अनुभव के आधार पर कह रहा हूँ। २००४ में लोकसभा चुनावों के दौरान मुझे बिहार में कई लोकसभा क्षेत्रों का दौरा करने का मौका मिला । मैंनें देखा कि नेता ठेकेदारों से घिरे थे और दिन भर के चुनाव प्रचार के बाद सिर्फ इसी विषय पर तर्क वितर्क करते थे कि कल किस इलाक़े में कौन सा झूठ बोला जा सकता है। ठेकेदार प्रत्याशी को पूरी तत्परता से ये बताने में व्यस्त दिखते थे कि आज पूरे दिन कितने रुपये बांटे गए। और इन सबके बदले बार-बार प्रत्याशी यही आश्वासन देता कि चिन्ता मत करो मेरे सांसद बनने के बाद तुम्हीं लोगों का राज होगा। लोकतंत्र की हत्या तो वहीं हो गयी। ठेकेदारों और बनियों के पैसे से चुनाव लड़ने वाले नेताओं से अगर जनता विकास और कल्याण की उम्मीद करती है तो इसे बेवकूफी से ज्यादा और कुछ नहीं कहा जा सकता। आप दलाल चुनेंगे तो नेता दलाली ही करेंगे। ऐसा नहीं है कि सारे नेता ऐसे ही हैं। मैं ऐसे नेताओं से भी मिला हूँ जो जनहित के लिए राजनीति करते हैं। लेकिन उनका भी यही रोना है कि ज्यादातर लोग ऐसे कार्यों के लिए आते हैं जिनमें वोह हमसे दलाली की उम्मीद करते हैं। ज़रूरत इस बात की है कि राजनीति में स्वस्थ परम्परा का विकास हो और अच्छे जनप्रतिनिधियों का चयन किया जाये ताकि आपको अपने नेता की करतूतों की वजह से शर्मिंदा ना होना पड़े।

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